हनुमान जी और साहुकरणी की कहानी
🚩🚩 हनुमानजी और साहूकारनी की कहानी 🚩🚩
बहुत पुराने समय की बात है एक साहूकार और उसकी एक पत्नी साहूकारनी थी। साहूकारनी का रोज हनुमानजी के मंदिर में जाने का नियम था और साथ में वह एक रोटी और चूरमा की पिंडया ले जाती थी।
हनुमानजी की पूजा करती भोग लगाती और कहती जाती “लाल लंगोटी खांदे सोठो, लेवो भगवान खावो रोटी” और बोलती कि “मैं थारे जवानी में देऊ तु म्हारे बुढ़ापा में दीजे।”(मतलब – मैं आप को अभी जवानी या अच्छे दिनों में खिला रही हूँ आप मेरा बुढ़ापे या बुरे दिनों में ध्यान रखना।)
ऐसा करते-करते समय बीतता गया। साहूकारनी का एक बेटा था वह भी जवान हो गया तो साहूकारनी ने उसकी शादी करवा दी और साहूकारनी की बहू आ गयी।
थोड़े दिन बाद बहू ने सासुजी से पूछा कि-”सासुजी! आप रोज रोटी और चूरमा का पिंड्या लेकर कहाँ जाती हो?” तब सासु बोली कि-”हनुमानजी के मंदिर में चढ़ाने जाती हूँ।”
यह सुन कर बहू ने सासु को मंदिर जाना बंद करा दिया और बोली कि- “तुम ऐसे रोज ले कर जाओगी तो पूरा घर खाली कर दोगी।”
यह सुन कर सासु को बहुत दुःख हुआ और वह बिना खाना खाये ही सो गयी। ऐसे ही भूखे रहकर और रोते-रोते पाँच दिन हो गये.
तब हनुमानजी साहूकारनी के सपने में आए और बोले कि – “क्यों सोती है ? उठ। लाल लंगोटो खांदे सोटो हाथ में रोटो खा बुढ़ियामाई रोटो, तु म्हारे जवानी में दियो थो, मै थारे बढापा में दोऊ।”
हनुमानजी को देख कर साहूकारनी बहुत खुश हुई पर फिर थोड़ा सोच कर बोली कि- “आज तो तुम दे रहे हो। सुबह कौन देगा।”
यह सुन कर हनुमान जी बोले की “मैं दूंगा।”
इसके बाद रोज हनुमानजी डोकरी को रोटी और चूरमा खिलाकर जाते।
और दूसरी तरफ घर में अन्न के लाले पड़ गए, पूरा घर का धन ख़तम हो गया। और बहु बहुत परेशान रहने लगी और उसको अपनी सास की याद आयी उसने सोचा कि दस दिन हो गए, मैंने सासु को कुछ खाने को नहीं दिया,तो मै ऊपर जाकर देखूं वह जिन्दा है या मर गयी ,तब वह ऊपर जाकर क्या देखती है की उसकी सास तो रोटी खा रही थी।
यह देख कर बहु ने सास से पूछा – “अब तुम हनुमानजी के मंदिर नहीं जाती हो ?” तो सासुजी बोली कि – “तुमने तो मुझे रोटी नहीं दी तो मैं कैसे हनुमानजी के पास जाऊँ, पर हनुमानजी तो मुझे रोज रोटी खिलाने आते हैं।”
यह सुन कर बहु को सब समझ आ गया और उसको अपनी गलती का बहुत पछतावा हुआ और बहू अपनी सासु के पैर पकड़कर बोली कि – “हम तुम्हारे भाग से ही रोटी खाते थे और जब से मैंने आप को खाना देना बंद किया है और दुखी किया है। तब से घर में कुछ भी नहीं रहा सब ख़तम हो गया है। अब आप हमे माफ़ कर दो और हमारे साथ रहो और रोज हनुमानजी को रोटी और चूरमा का भोग खिलाओ।”
उस दिन से सब लोग हनुमानजी की उपासना की मान्यता करने लगे। और सभी लोग साथ में मिल कर हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ करते और हनुमान जी की आरती करते।
आइये हम सभी हनुमान जी से प्राथना करते है की – “हे हनुमानजी महाराज जैसा उस डोकरी ने टूटया वैसा सबने टूटजो। खोटी की खरी अधूरी की पूरी कर जो।
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